Sunday 4 September 2011

मैं प्यार करता हूँ

तुम्हारी तरह
मैं प्यार करता हूँ
प्यार को,
ज़िंदगी को,
चीज़ों की मीठी ख़ुशबुओं को,
जनवरी माह के आसमानी नज़ारे को
प्यार करता हूँ

मेरा लहू उबलता है
मेरी आँखें हँसती हैं
कि मैं आँसुओं की कलियाँ जानता हूँ
मुझे भरोसा है कि दुनिया ख़ूबसूरत है

और कविता रोटी की तरह
सबकी ज़रूरत है

और यह
कि मेरी शिराएँ मुझमें ही ख़त्म नहीं होतीं
बल्कि ये लहू एक है
उन सबका
जो लड़ रहे हैं ज़िंदगी के लिए,
प्यार के लिए,
सुन्दर नज़ारों और रोटी के लिए
और सबकी कविता के लिए...

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